कभी कोई मिटायेगा नही ऐसी इबारत है ।
मुहब्बत अक्स जिन्दा जिस्म में रब की इनायत है।।
मेरा मासूम दिल मोजे बला में मुस्कराता जो ।
बनाकर अज्म फौलादी छिपाता वो हरारत है ।।
कहीं उम्मीद पर बिजली गिरी है आज रोया दिल ।
वफा गुमसुम हुयी जब से ज़फा करती हिकारत है।।
निगाहों से गिरा चालाकियां छोड़ी नहीं फिर भी ।
अजब संसार ये सारा सियासत की तिजारत है।।
गमों को दूर करके जो 'अधर' पर गुल खिलाता था।
वही खामोश कर जीवन चला ,कैसी शरारत है ।।
शुभा शुक्ला मिश्रा 'अधर'
मुहब्बत अक्स जिन्दा जिस्म में रब की इनायत है।।
मेरा मासूम दिल मोजे बला में मुस्कराता जो ।
बनाकर अज्म फौलादी छिपाता वो हरारत है ।।
कहीं उम्मीद पर बिजली गिरी है आज रोया दिल ।
वफा गुमसुम हुयी जब से ज़फा करती हिकारत है।।
निगाहों से गिरा चालाकियां छोड़ी नहीं फिर भी ।
अजब संसार ये सारा सियासत की तिजारत है।।
गमों को दूर करके जो 'अधर' पर गुल खिलाता था।
वही खामोश कर जीवन चला ,कैसी शरारत है ।।
शुभा शुक्ला मिश्रा 'अधर'
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