छवि-विचार
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जैसे कलिका मन्त्रमुग्ध हो, पाकर अलि के गुंजन को
या फिर अम्बर ने गाया हो, पुण्य धरा के वंदन को
सोन चिरैया के अधरों पर, जब मुस्कान बिखर जाती है
नीर नयन मे आ जाते हैं, देख नेह के बन्धन को
🌹ओम अग्रवाल (बबुआ), मुंबई
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जैसे कलिका मन्त्रमुग्ध हो, पाकर अलि के गुंजन को
या फिर अम्बर ने गाया हो, पुण्य धरा के वंदन को
सोन चिरैया के अधरों पर, जब मुस्कान बिखर जाती है
नीर नयन मे आ जाते हैं, देख नेह के बन्धन को
🌹ओम अग्रवाल (बबुआ), मुंबई
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