मधुशाला छंद-
हृदयन अंकित हो गया सखी !,कैसे तुमको अब भूलूॅ
ऋतु सावन संगीत लहर है , कैसे तुमरे बिन झूलूँ
अगणित बार ताका छाया को ,मन नव नूतन से हर्षा
जब उर मंडल पा प्रसन्नता,चमक ओठ पर क्यों लूलूॅ।।
श्रीमन्नारायण चारी"विराट"
हृदयन अंकित हो गया सखी !,कैसे तुमको अब भूलूॅ
ऋतु सावन संगीत लहर है , कैसे तुमरे बिन झूलूँ
अगणित बार ताका छाया को ,मन नव नूतन से हर्षा
जब उर मंडल पा प्रसन्नता,चमक ओठ पर क्यों लूलूॅ।।
श्रीमन्नारायण चारी"विराट"
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