करता है वो दिन और रात मेहनत
फिर भी घर उसके अन्न नही रहेता
कभी मौसम तो कभी हालत से लडता है
फिर भी सोना माटी से वो उगाता है
करता है अन्न पूर्ती वो जग कि
खुद भूका वो रहे जाता है ।
है अनंन्त पिडा फिर भी मुस्कुराता है
जग का अन्नदाता किसान वो कहेलाता है ।।
पागल
फिर भी घर उसके अन्न नही रहेता
कभी मौसम तो कभी हालत से लडता है
फिर भी सोना माटी से वो उगाता है
करता है अन्न पूर्ती वो जग कि
खुद भूका वो रहे जाता है ।
है अनंन्त पिडा फिर भी मुस्कुराता है
जग का अन्नदाता किसान वो कहेलाता है ।।
पागल
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