न दिखकर भी उसे खूब दीखता है
जैसे अँधेरे में भी धुप दीखता है
हालत मेरी भी कुछ ऐसी है दोस्त
मुझे हर तरफ मेरा महबूब दीखता है
कवि नदीम जगदीशपुरी
जैसे अँधेरे में भी धुप दीखता है
हालत मेरी भी कुछ ऐसी है दोस्त
मुझे हर तरफ मेरा महबूब दीखता है
कवि नदीम जगदीशपुरी
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