मधुशाला छंद -
विचलित मन से क्या व्यक्त करूँ, उर से चिंता उतराता
प्रगाढ़ भावनाएँ पिघलकर , भाष्प नैन से बहजाता
स्वम् ही बरसने लगा है तो, आत्म संयमन कब कैसे
अंतस घन को तार करो पिय ,न तो सागर उभर जाता।।
श्रीमन्नारायण चारी"विराट"
विचलित मन से क्या व्यक्त करूँ, उर से चिंता उतराता
प्रगाढ़ भावनाएँ पिघलकर , भाष्प नैन से बहजाता
स्वम् ही बरसने लगा है तो, आत्म संयमन कब कैसे
अंतस घन को तार करो पिय ,न तो सागर उभर जाता।।
श्रीमन्नारायण चारी"विराट"
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