गर्दिश की रात में इतना हार गया
लिबास पहने रहा बदन उतार गया
मस्तमौला ना जी सका अपनी उम्र
घर के लोगों का गुनाह गार गया
दौलत कमाने में लगा दिया जीवन
अकेले ही इस दुनिया के पार गया
खाली हाथ आया खाली हाथ जाये
सबक देता सिकंदर सरदार गया
भोपाली जिंदगी का यही तमाशा
उसकी पेशी मैं हर अय्यार गया
कवि दिनेश भोपाली
लिबास पहने रहा बदन उतार गया
मस्तमौला ना जी सका अपनी उम्र
घर के लोगों का गुनाह गार गया
दौलत कमाने में लगा दिया जीवन
अकेले ही इस दुनिया के पार गया
खाली हाथ आया खाली हाथ जाये
सबक देता सिकंदर सरदार गया
भोपाली जिंदगी का यही तमाशा
उसकी पेशी मैं हर अय्यार गया
कवि दिनेश भोपाली
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