कोकिल अब तो आ जाना!
मधुर दिवस ने दिन घेरा है
रात्रिकाल सुख का डेरा है
मधुमासी समीर परिमल भी
सखि! अभाव केवल तेरा है।
बैठ रसाल डाल तरुवर पर
मीठे बोल सुना जा ना!
आ विदायी दे दें ठिठुरन को
अलसाई जन-मन अनबन को
हम दोनों चल रूप निहारें
बैठ मास वासंती तन को।
देख मानना नेह निमन्त्रण
करना कोई बहाना ना!!
पतझड़ देख लगे ऐसे कि
चीर प्रकृत छोड़ रही सी
एक यौवना पहन वसन नव
करे अलंकृत तन जैसे कि।
कूक रहे बच्चे बागों । आ!
इनसा कोई दीवाना ना।
दिखे गगन यह कोरा कोरा
नही पड़ा बादल का डोरा
पता तुझे कल इन्ही दिनों में
मेघों ने भू तल सर बोरा।
बीत गई पुर साल बिना सखि!
अब कहीं समय बिताना ना।
कर दिनकर हौले होले हैं
कृषकों ने कर-पग खोले हैं
कहीं कनिक सरसों लहलहावे
कहीं ईख गन्ने छोले हैं।
सौरभ सुरभि आए बौरों से
बौर खिले !बौराना ना!!
कोकिल अब तो आ जाना!
-अविरल
मधुर दिवस ने दिन घेरा है
रात्रिकाल सुख का डेरा है
मधुमासी समीर परिमल भी
सखि! अभाव केवल तेरा है।
बैठ रसाल डाल तरुवर पर
मीठे बोल सुना जा ना!
आ विदायी दे दें ठिठुरन को
अलसाई जन-मन अनबन को
हम दोनों चल रूप निहारें
बैठ मास वासंती तन को।
देख मानना नेह निमन्त्रण
करना कोई बहाना ना!!
पतझड़ देख लगे ऐसे कि
चीर प्रकृत छोड़ रही सी
एक यौवना पहन वसन नव
करे अलंकृत तन जैसे कि।
कूक रहे बच्चे बागों । आ!
इनसा कोई दीवाना ना।
दिखे गगन यह कोरा कोरा
नही पड़ा बादल का डोरा
पता तुझे कल इन्ही दिनों में
मेघों ने भू तल सर बोरा।
बीत गई पुर साल बिना सखि!
अब कहीं समय बिताना ना।
कर दिनकर हौले होले हैं
कृषकों ने कर-पग खोले हैं
कहीं कनिक सरसों लहलहावे
कहीं ईख गन्ने छोले हैं।
सौरभ सुरभि आए बौरों से
बौर खिले !बौराना ना!!
कोकिल अब तो आ जाना!
-अविरल
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