"आशिक़ों को मिटाना है"
........"शायर मेहताब"........
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ये रिवाज़ तो बड़ा पुराना है,,
कि आशिक़ों को मिटाना है...
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हम नही उस रस्ते में निकले,,
जिस राह पे चला जमाना है...
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इश्क़ की मंज़िल अब यही है,,
फाँसलों में ही मर जाना है...
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कब मांगी तुझसे वफ़ा मैंने,,
तू कुछ भी दे बस वही पाना है...
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लाश एक दिन ना रखी घर मे,,
इन दिलों को कब जलाना है...
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पलकों की चौखट धुल जाती है,,
यार ने कब नज़र आना है...
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शहर में है आवारगी का आलम,,
मेहताब हमारा दिल वीराना है...
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#शायर_मेहताब
........"शायर मेहताब"........
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ये रिवाज़ तो बड़ा पुराना है,,
कि आशिक़ों को मिटाना है...
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हम नही उस रस्ते में निकले,,
जिस राह पे चला जमाना है...
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इश्क़ की मंज़िल अब यही है,,
फाँसलों में ही मर जाना है...
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कब मांगी तुझसे वफ़ा मैंने,,
तू कुछ भी दे बस वही पाना है...
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लाश एक दिन ना रखी घर मे,,
इन दिलों को कब जलाना है...
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पलकों की चौखट धुल जाती है,,
यार ने कब नज़र आना है...
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शहर में है आवारगी का आलम,,
मेहताब हमारा दिल वीराना है...
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#शायर_मेहताब
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