एक पुरानी ग़ज़ल
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क्यों सियासत की बू आ रही आजकल?
किसको खलती हमारी ख़ुशी आजकल ?
हमको तो है किसी से रकाबत नहीं ;
किसको हमसे हुई दुश्मनी आजकल ?
जी तुम्हारा जहाँ चाहता खुश रहो ;
हमको भाती यहीं चाँदनी आजकल ।
जिसने इस अंजुमन में बुलाया मुझे ,
खौफ से जाने किसके गई आजकल ?
ऐ'अजय' खूब मिलता यहाँ पर सुकूँ ,
सोचना क्या कहीं जाने की आजकल ?
-अजय भोजपुरी
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क्यों सियासत की बू आ रही आजकल?
किसको खलती हमारी ख़ुशी आजकल ?
हमको तो है किसी से रकाबत नहीं ;
किसको हमसे हुई दुश्मनी आजकल ?
जी तुम्हारा जहाँ चाहता खुश रहो ;
हमको भाती यहीं चाँदनी आजकल ।
जिसने इस अंजुमन में बुलाया मुझे ,
खौफ से जाने किसके गई आजकल ?
ऐ'अजय' खूब मिलता यहाँ पर सुकूँ ,
सोचना क्या कहीं जाने की आजकल ?
-अजय भोजपुरी
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