ग़ज़ल 🖍🌷
साेचता हूँ सब पराये कौन अपना है यहाँ
हर किसी को आजमाकर हमने देखा है यहाँ
अब यकीं आता नही है हर किसी की बात पर
क्या पता है कौन सच्चा कौन झूठा है यहाँ
दौर कैसा चल रहा है आजकल ये ऐ खुदा
अब भला परवा किसी की कौन करता है यहाँ
हर किसी के दिल मे देखो बस रही है नफ़रते
प्यार से अब तो किसी से कौन मिलता है यहाँ
हो गये बेघर यहाँ इस शहर मे मुफलिस बहुत
दंगाे की इस आग मे हर घर जो उजड़ा है यहाँ
शाम ये हर रोज कटती है उदासी मे मेरी
ज़िदगी के साथ कोई ग़म हमेशा है यहाँ
इस कदर धाेखा दिया है ज़ीस्त ने उस शख्स को
जो रहा है भीड़ मे वो आज तन्हा है यहाँ
इसलिये तन्हा भी होकर वो रहा तन्हा नही
पास आज़म के हमेशा एक चेहरा है यहाँ
आज़म सावन.खान
सहारनपुर
साेचता हूँ सब पराये कौन अपना है यहाँ
हर किसी को आजमाकर हमने देखा है यहाँ
अब यकीं आता नही है हर किसी की बात पर
क्या पता है कौन सच्चा कौन झूठा है यहाँ
दौर कैसा चल रहा है आजकल ये ऐ खुदा
अब भला परवा किसी की कौन करता है यहाँ
हर किसी के दिल मे देखो बस रही है नफ़रते
प्यार से अब तो किसी से कौन मिलता है यहाँ
हो गये बेघर यहाँ इस शहर मे मुफलिस बहुत
दंगाे की इस आग मे हर घर जो उजड़ा है यहाँ
शाम ये हर रोज कटती है उदासी मे मेरी
ज़िदगी के साथ कोई ग़म हमेशा है यहाँ
इस कदर धाेखा दिया है ज़ीस्त ने उस शख्स को
जो रहा है भीड़ मे वो आज तन्हा है यहाँ
इसलिये तन्हा भी होकर वो रहा तन्हा नही
पास आज़म के हमेशा एक चेहरा है यहाँ
आज़म सावन.खान
सहारनपुर
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