यूं पतझड़ के बागों में न बैठा करो ;
सच मानिये ऋतु बसन्ती आ जायेगी ;
हमने दे तो दिया दिल तुम्हें प्यार में ;
अब आप ही बतायें कैसे जियूं बिन प्यार के ;
थोड़ा हो जाओ तुम हम पर भी महरबॉ ;
न लबों से सही आँखों से एतबार दो ;
कि न छोड़ोगे तुम मेरा साथ यूं ;
जैसे बादल छोड़ देता है आकाश को ;
यूं पतझड़ के बागों में न बैठा करो ;
सच मानिये ऋतु बसन्ती आ जायेगी ;
✍ - शिवम दीक्षित
सच मानिये ऋतु बसन्ती आ जायेगी ;
हमने दे तो दिया दिल तुम्हें प्यार में ;
अब आप ही बतायें कैसे जियूं बिन प्यार के ;
थोड़ा हो जाओ तुम हम पर भी महरबॉ ;
न लबों से सही आँखों से एतबार दो ;
कि न छोड़ोगे तुम मेरा साथ यूं ;
जैसे बादल छोड़ देता है आकाश को ;
यूं पतझड़ के बागों में न बैठा करो ;
सच मानिये ऋतु बसन्ती आ जायेगी ;
✍ - शिवम दीक्षित
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