त्रिभंगी छंद -
हे ! रुद्र भयंकर ,तुम प्रलयंकर , लय के शासक हो स्वामी
हे ! दैत्य विनाशक,तुम त्रिपुरांतक,विभु जग पालक हो स्वामी
गौरी हिय वासा , शैल निवासा , आत्मा चालक हो स्वामी
हे ! त्रिगुणाकारा , भव अविकारा, त्रिनेत्र पावक हो स्वामी।।
हे !भुजंग भूषक, भस्म विलेपक ,जन्मों का श्राप मिटा दो
हे ! श्मशान वासा ,निर्गुण दासा, आत्मा का ताप मिटा दो
तुम आदि अघोरा , प्रकृति विभोरा, मम मानस पाप मिटा दो
ओम् शिवाय नमो ,रुद्राय नमो, भव का संताप मिटा दो।।
श्रीमन्नारायण चारी"विराट"
हे ! रुद्र भयंकर ,तुम प्रलयंकर , लय के शासक हो स्वामी
हे ! दैत्य विनाशक,तुम त्रिपुरांतक,विभु जग पालक हो स्वामी
गौरी हिय वासा , शैल निवासा , आत्मा चालक हो स्वामी
हे ! त्रिगुणाकारा , भव अविकारा, त्रिनेत्र पावक हो स्वामी।।
हे !भुजंग भूषक, भस्म विलेपक ,जन्मों का श्राप मिटा दो
हे ! श्मशान वासा ,निर्गुण दासा, आत्मा का ताप मिटा दो
तुम आदि अघोरा , प्रकृति विभोरा, मम मानस पाप मिटा दो
ओम् शिवाय नमो ,रुद्राय नमो, भव का संताप मिटा दो।।
श्रीमन्नारायण चारी"विराट"
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