मेरी कविता में माटी की पीर सुनाई देगी
अंतर के बहते दर्दों की नीर दिखाई देगी
~
आर्तनाद तुम सुनो जरा जिनकी है बंद जुबानें
कोख में हीं मारी जाती जो अजन्मी संतानें
~
मेरी कविता में उनकी दबी सिसकती स्वर है
बंद आंख खोलो अपनी ये घिन्न विनिष्ट पहर है
~
अंतर में आह छुपाकर जो नहीं खोलते मुख हैं
देखो हाल किसानों का जो सहते कितना दुख हैं
~
भीख मांगती है बचपनें और बेरोजगार जवानी
ठोकर खाती बुढापा ना आंख में आया पानी
~
एक दर्द रहे तो कहदूं दर्द है लाखों दिल में
पाश्चात्य में देश डुब गया आज खुली महफिल में
~
आज सभ्यता व संस्कृति पे चोट पड़ी है भारी
हर बस्ती से उठ रही है नफरत की चिनगारी
~
काश्मीर खाक हो गया जलकर भीषण ज्वाले में
जहर घोल दी जहरीलों ने केशर वाली प्याले में
~
आजादी के बाद भी अपनी क्या हालात है देखो
टुकड़े हम बंटे मगर क्या हाल है अपनी देखो
~
कलमकार हूं दुआ है मेरी हर डाली खिल जाए
इस माटी के कण कण में प्रेमामृत घुल जाए
~
उदय शंकर चौधरी नादान
पटोरी दरभंगा बिहार
7738559421
Live mumbai
अंतर के बहते दर्दों की नीर दिखाई देगी
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आर्तनाद तुम सुनो जरा जिनकी है बंद जुबानें
कोख में हीं मारी जाती जो अजन्मी संतानें
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मेरी कविता में उनकी दबी सिसकती स्वर है
बंद आंख खोलो अपनी ये घिन्न विनिष्ट पहर है
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अंतर में आह छुपाकर जो नहीं खोलते मुख हैं
देखो हाल किसानों का जो सहते कितना दुख हैं
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भीख मांगती है बचपनें और बेरोजगार जवानी
ठोकर खाती बुढापा ना आंख में आया पानी
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एक दर्द रहे तो कहदूं दर्द है लाखों दिल में
पाश्चात्य में देश डुब गया आज खुली महफिल में
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आज सभ्यता व संस्कृति पे चोट पड़ी है भारी
हर बस्ती से उठ रही है नफरत की चिनगारी
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काश्मीर खाक हो गया जलकर भीषण ज्वाले में
जहर घोल दी जहरीलों ने केशर वाली प्याले में
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आजादी के बाद भी अपनी क्या हालात है देखो
टुकड़े हम बंटे मगर क्या हाल है अपनी देखो
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कलमकार हूं दुआ है मेरी हर डाली खिल जाए
इस माटी के कण कण में प्रेमामृत घुल जाए
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उदय शंकर चौधरी नादान
पटोरी दरभंगा बिहार
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