ग़ज़ल ।
है हकीकत क़यास थोड़ी है
अब वो इतना उदास थोड़ी है
तुम जो चोला पहन के निकले हो
ये तुम्हारा लिबास थोड़ी है
तश्नगी पाक है हमारी , ये
कोई झूटा गिलास थोड़ी है
आँख उट्ठे न उस तरफ कोई
हुक्म है इल्तिमास थोड़ी है
कौन पीता है रोज़ खुश होकर
आंसुओं में मिठास थोड़ी है
अब तो बतलाओ मेरे बारे में
अब कोई आस- पास थोड़ी है
सत्य प्रकाश शर्मा । सौजन्य से-
मगसम कार्यालय
लखनऊ
है हकीकत क़यास थोड़ी है
अब वो इतना उदास थोड़ी है
तुम जो चोला पहन के निकले हो
ये तुम्हारा लिबास थोड़ी है
तश्नगी पाक है हमारी , ये
कोई झूटा गिलास थोड़ी है
आँख उट्ठे न उस तरफ कोई
हुक्म है इल्तिमास थोड़ी है
कौन पीता है रोज़ खुश होकर
आंसुओं में मिठास थोड़ी है
अब तो बतलाओ मेरे बारे में
अब कोई आस- पास थोड़ी है
सत्य प्रकाश शर्मा । सौजन्य से-
मगसम कार्यालय
लखनऊ
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