क्या रोज डे का प्रेम ऐसा है?
मथुरा में जायो तो पठायो गयो गोकुल को,
वृन्दावन पावन बनाइ दिखला गयो।
कबहूँ चुरायो चीर माखन चुरायो कहूँ,
चित को चुरायो रस प्रेम को पिला गयो।
कुँजन की छाँह निज ग्वालन सखान भेंटि,
अलख अनीह सुचि रूप से मिला गयो।
मिलत न पार जाको वेदन पुराणन में,
नन्द जी को लाल वह प्रेम सिखला गयो।
-शुभम शुक्ल
मथुरा में जायो तो पठायो गयो गोकुल को,
वृन्दावन पावन बनाइ दिखला गयो।
कबहूँ चुरायो चीर माखन चुरायो कहूँ,
चित को चुरायो रस प्रेम को पिला गयो।
कुँजन की छाँह निज ग्वालन सखान भेंटि,
अलख अनीह सुचि रूप से मिला गयो।
मिलत न पार जाको वेदन पुराणन में,
नन्द जी को लाल वह प्रेम सिखला गयो।
-शुभम शुक्ल
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