सीमा के प्रहरी
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जिनकी खातिर व्यक्ति नही ये, देश समूचा अपना है
जिनकी आँखों मे भारत माँ की, माटी का ही सपना है
वतन परस्ती मे छोड़ा है, अपने घर परिवारों को
जो जीवन मे भूल गए हैं, गुलशन और बहारों को
शोणित का जो तिलक लगाते, माटी जिनका चंदन है
रण के प्रण से बँधे हुए, हे लाल तुम्हारा अभिनन्दन है
तुमने माँ की ममता छोड़ी, और पिता को छोड़ दिया
भाई से मुख मोड़ा तुमने, बहना से मुख मोड़ लिया
परिणय का सुख त्यागा तुमने, बच्चे याद बहुत आए
किन्तु देश की खातिर तुमने, याद रखे कुछ बिसराए
तुमसे पूजित धरा हमारी, तुमसे ही तो वंदन है
रण के प्रण से बँधे हुए, हे लाल तुम्हारा अभिनन्दन है
दुश्मन का कर्ज चुकाते हो तुम, पूरा आना पाई से
रूह काँपती है उनकी तो, तेरी ही परछाई से
तेरे शौर्य पराक्रम के तो, ग्रन्थ लिखे जा सकते हैं
तेरे जैसा भाव समर्पण, और कहाँ पा सकते हैं
भारत माँ की रक्षा से जो, तेरा नेह निबन्धन है
रण के प्रण से बँथे हुए, हे लाल तुम्हारा अभिनन्दन है
🌹ओम अग्रवाल (बबुआ), मुंबई
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जिनकी खातिर व्यक्ति नही ये, देश समूचा अपना है
जिनकी आँखों मे भारत माँ की, माटी का ही सपना है
वतन परस्ती मे छोड़ा है, अपने घर परिवारों को
जो जीवन मे भूल गए हैं, गुलशन और बहारों को
शोणित का जो तिलक लगाते, माटी जिनका चंदन है
रण के प्रण से बँधे हुए, हे लाल तुम्हारा अभिनन्दन है
तुमने माँ की ममता छोड़ी, और पिता को छोड़ दिया
भाई से मुख मोड़ा तुमने, बहना से मुख मोड़ लिया
परिणय का सुख त्यागा तुमने, बच्चे याद बहुत आए
किन्तु देश की खातिर तुमने, याद रखे कुछ बिसराए
तुमसे पूजित धरा हमारी, तुमसे ही तो वंदन है
रण के प्रण से बँधे हुए, हे लाल तुम्हारा अभिनन्दन है
दुश्मन का कर्ज चुकाते हो तुम, पूरा आना पाई से
रूह काँपती है उनकी तो, तेरी ही परछाई से
तेरे शौर्य पराक्रम के तो, ग्रन्थ लिखे जा सकते हैं
तेरे जैसा भाव समर्पण, और कहाँ पा सकते हैं
भारत माँ की रक्षा से जो, तेरा नेह निबन्धन है
रण के प्रण से बँथे हुए, हे लाल तुम्हारा अभिनन्दन है
🌹ओम अग्रवाल (बबुआ), मुंबई
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