खूब चली है हवा कहीँ ना एक सुनामी बन जाए
घर की कुर्सी भी ना सम्पत्ती बेनामी बन जाए
शहर छोडिये गाँव-गाँव का सन्नाटा यूँ कहता है
मुखिया की पहचान न गढ़ में ही गुमनामी बन जाए
कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह "आग"
9675426080
घर की कुर्सी भी ना सम्पत्ती बेनामी बन जाए
शहर छोडिये गाँव-गाँव का सन्नाटा यूँ कहता है
मुखिया की पहचान न गढ़ में ही गुमनामी बन जाए
कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह "आग"
9675426080
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