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फरवरी की गुनगुनी सी धूप में
क्या निखार आया है तेरे रूप में
थोथा थोथा उड़ गया है देखिए
भारी दाना रह गया है सूप में
रात रानी बनी दिन राजा हुए
सुबह-शाम दोनों बने प्रतिरूप में
ओस की बूँदें मोती सी लगे
धुँध छाई प्रीति के स्वरूप में
अलग-अलग लाबादने ओढ़े हुए
आदमी कैसा बना बहुरूप में
कैसी उड़रही 'व्यग्र' पानी से धुंआ
आग जैसे लगी हो सारे कूप में
****
ग़ज़लकार
-- विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'
गंगापुर सिटी
फरवरी की गुनगुनी सी धूप में
क्या निखार आया है तेरे रूप में
थोथा थोथा उड़ गया है देखिए
भारी दाना रह गया है सूप में
रात रानी बनी दिन राजा हुए
सुबह-शाम दोनों बने प्रतिरूप में
ओस की बूँदें मोती सी लगे
धुँध छाई प्रीति के स्वरूप में
अलग-अलग लाबादने ओढ़े हुए
आदमी कैसा बना बहुरूप में
कैसी उड़रही 'व्यग्र' पानी से धुंआ
आग जैसे लगी हो सारे कूप में
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ग़ज़लकार
-- विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'
गंगापुर सिटी
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