2122 2122 2122 212
"स्वतंत्रता संग्राम"
ढा रहे थे जब सितम गोरे हमारे देश में,
और करने वो लगे थे हिन्द में मनमानियाँ।
ज़ुल्म की इस मुल्क़ में जब चल रहीं थीं आँधियाँ,
तब उठी थीं इस धरा पर क्राँति की चिंगारियाँ।।1।।
कर दिये बर्वाद सब उद्योग अपने देश के,
हो रहे बेकार अब थे श्रमिक प्यारे देश के।
आज अपने ही घरों में कर रहे मजदूरियाँ,
तब उठी थीं इस धरा पर क्राँति की चिंगारियाँ।।2।।
खो गया उल्लास था उत्सवों में पर्व में,
धर्म की होने लगी थी हानि भारत वर्ष में।।
छा रहीं थीं रीतियाँ ही हर तरफ इसाइयाँ,
तब उठी थीं इस धरा पर क्राँति की चिंगारियाँ।।3।।
जाल फैला कर रखा सैयाद ने हर छोर से,
बाँधने आजाद पंछी कर रखीं तैयारियाँ।।
लूटने जब वो लगे थे आशियाने प्यार के,
तब उठी थीं इस धरा पर क्राँति की चिंगारियाँ।।4।।
हर लिया चैनो अमन था दुश्मनों ने देश से,
चाहता आज़ाद होना ये परिंदा क़ैद से।
देश वासी ने लगायीं जान की फ़िर बाजियाँ
तब उठी थीं इस धरा पर क्राँति की चिंगारियाँ।।5।।
...✍🏻✍🏻✍🏻प्रतीक द्विवेदी
"स्वतंत्रता संग्राम"
ढा रहे थे जब सितम गोरे हमारे देश में,
और करने वो लगे थे हिन्द में मनमानियाँ।
ज़ुल्म की इस मुल्क़ में जब चल रहीं थीं आँधियाँ,
तब उठी थीं इस धरा पर क्राँति की चिंगारियाँ।।1।।
कर दिये बर्वाद सब उद्योग अपने देश के,
हो रहे बेकार अब थे श्रमिक प्यारे देश के।
आज अपने ही घरों में कर रहे मजदूरियाँ,
तब उठी थीं इस धरा पर क्राँति की चिंगारियाँ।।2।।
खो गया उल्लास था उत्सवों में पर्व में,
धर्म की होने लगी थी हानि भारत वर्ष में।।
छा रहीं थीं रीतियाँ ही हर तरफ इसाइयाँ,
तब उठी थीं इस धरा पर क्राँति की चिंगारियाँ।।3।।
जाल फैला कर रखा सैयाद ने हर छोर से,
बाँधने आजाद पंछी कर रखीं तैयारियाँ।।
लूटने जब वो लगे थे आशियाने प्यार के,
तब उठी थीं इस धरा पर क्राँति की चिंगारियाँ।।4।।
हर लिया चैनो अमन था दुश्मनों ने देश से,
चाहता आज़ाद होना ये परिंदा क़ैद से।
देश वासी ने लगायीं जान की फ़िर बाजियाँ
तब उठी थीं इस धरा पर क्राँति की चिंगारियाँ।।5।।
...✍🏻✍🏻✍🏻प्रतीक द्विवेदी
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