कुछ सबब कुछ वास्ता बनता रहा
ज़िंदगी का सिलसिला चलता रहा
पाँव फिसलन रहगुज़र पर हरक़दम
वक़्ते-नाज़ुक हमक़दम मिलता रहा
आँख में हर रात इक जुगनू नया
नौ सहर की ताक में जलता रहा
वक़्ते-रुख़्सत चश्मेनम से देखना
ख़्वाब की ताबीर में ढलता रहा
मौजों की तड़पन का आलम याखुदा
पूर्णिमा का चाँद शब चढ़ता रहा
फूल की खुशबू तबीयत का करम
गुल मगर क्यूँ खार सा चुभता रहा
पाँव के छालों में मंज़िल की तलब
हिज्र दिल में फूलता फलता रहा
आँख से ओझल हुआ जब कारवाँ
कान सुर बाँगे-दरा बजता रहा
खुदफ़रेबी का जुनूँ यूँ सर चढ़ा
जाँ-निसारी का हुनर घुलता रहा
देख ‘साहिल’ शख़्स वह मक़बूल है
रौ में जो अपनी सदा बहता रहा
साहिल
ज़िंदगी का सिलसिला चलता रहा
पाँव फिसलन रहगुज़र पर हरक़दम
वक़्ते-नाज़ुक हमक़दम मिलता रहा
आँख में हर रात इक जुगनू नया
नौ सहर की ताक में जलता रहा
वक़्ते-रुख़्सत चश्मेनम से देखना
ख़्वाब की ताबीर में ढलता रहा
मौजों की तड़पन का आलम याखुदा
पूर्णिमा का चाँद शब चढ़ता रहा
फूल की खुशबू तबीयत का करम
गुल मगर क्यूँ खार सा चुभता रहा
पाँव के छालों में मंज़िल की तलब
हिज्र दिल में फूलता फलता रहा
आँख से ओझल हुआ जब कारवाँ
कान सुर बाँगे-दरा बजता रहा
खुदफ़रेबी का जुनूँ यूँ सर चढ़ा
जाँ-निसारी का हुनर घुलता रहा
देख ‘साहिल’ शख़्स वह मक़बूल है
रौ में जो अपनी सदा बहता रहा
साहिल
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