मुझे मालूम है मुझको समझना है ज़रा मुश्किल
मगर जिसने मुझे समझा उसी को मैं हुआ हासिल
कभी इंसानियत के नाम पर सब जान देते थे
कहो कैसे ये दुनिया अब बनी इंसान की क़ातिल
किसी भी चीज़ को पाना नहीं आसान होता है
उसे पाना अगर है तो बनो उस चीज़ के काबिल
नहीं मालूम था खुद की लड़ाई खुद से होनी है
नहीं तो आज कदमों में पड़ी होती मेरी मंज़िल
किसी को दिल से चाहो तो कोई उम्मीद मत रखना
यूँ उम्मीदों के चक्कर में फ़क़त बस टूटता है दिल
ये शायर आँसुओं को भी ग़ज़ल का रूप देता है
मज़ा लेकर पुनः घर लौट जाती है यहाँ महफ़िल
~ अक्षय 'अमृत'
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मगर जिसने मुझे समझा उसी को मैं हुआ हासिल
कभी इंसानियत के नाम पर सब जान देते थे
कहो कैसे ये दुनिया अब बनी इंसान की क़ातिल
किसी भी चीज़ को पाना नहीं आसान होता है
उसे पाना अगर है तो बनो उस चीज़ के काबिल
नहीं मालूम था खुद की लड़ाई खुद से होनी है
नहीं तो आज कदमों में पड़ी होती मेरी मंज़िल
किसी को दिल से चाहो तो कोई उम्मीद मत रखना
यूँ उम्मीदों के चक्कर में फ़क़त बस टूटता है दिल
ये शायर आँसुओं को भी ग़ज़ल का रूप देता है
मज़ा लेकर पुनः घर लौट जाती है यहाँ महफ़िल
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