कृपा रहे ईश की तुमपर,
तुम बढ़ो दिन-रात
मैं चाहता हूँ तन-मन से,
विहँसे नवल प्रभात ।
बाधा-विघ्न न आवै पथ पर,
रहो सदा गतिमान
नन्दन-वन सा सुरभित हो,
जीवन का उद्यान ।
बढ़े चलो जीवन भर तुम,
हर पल नया आयाम
विवेकानंद आदर्श हैं तेरे,
करो संघर्ष सुवह औ शाम ।
दुनिया में युवा बहुत हैं,
उनके कितने नाम
निकल जाओ तुम सबसे आगे,
कृपा करें श्रीराम ।
दल पर दल खोलता पूर्ण हो,
खिलता जैसे फूल,
तैसे ही खिलो श्रृंग पर,
हिले न तिलभर मूल ।
कलम शारदा हाथों से मैं,
करता हूँ अभिषेक
पूरे भारतवर्ष में फैले,
गुण ज्ञान और विवेक
राम निवास कुमार
लेखक-सह-कवि
दुर्गापुरी, मालीघाट
मुजफ्फरपुर ✍
तुम बढ़ो दिन-रात
मैं चाहता हूँ तन-मन से,
विहँसे नवल प्रभात ।
बाधा-विघ्न न आवै पथ पर,
रहो सदा गतिमान
नन्दन-वन सा सुरभित हो,
जीवन का उद्यान ।
बढ़े चलो जीवन भर तुम,
हर पल नया आयाम
विवेकानंद आदर्श हैं तेरे,
करो संघर्ष सुवह औ शाम ।
दुनिया में युवा बहुत हैं,
उनके कितने नाम
निकल जाओ तुम सबसे आगे,
कृपा करें श्रीराम ।
दल पर दल खोलता पूर्ण हो,
खिलता जैसे फूल,
तैसे ही खिलो श्रृंग पर,
हिले न तिलभर मूल ।
कलम शारदा हाथों से मैं,
करता हूँ अभिषेक
पूरे भारतवर्ष में फैले,
गुण ज्ञान और विवेक
राम निवास कुमार
लेखक-सह-कवि
दुर्गापुरी, मालीघाट
मुजफ्फरपुर ✍
0 comments:
Post a Comment