सपनो की चाशनी मीठी सी,
कोशिशे चिपकी है चींटी सी।
बून्द बून्द समन्दर ख़ाली होगा
जिंदगी की सुराही है फूटी सी।
खुश हो जायूँगा लो हाथ थामकर,
खाओ न कोई कसम झूठी सी।
हवाएं बुझ जाती, दिल डूबता है
जान मेरी तू रहती जब रूठी सी।
बांध के रस्सी यादें पींघे भरती हैं,
मेरे दिल में गड़ी है इक खूंटी सी।
ख़्वाबों का पत्ता पत्ता बिखर गया,
हसरतों की बस्ती दिखती लूटी सी।
राज़ चल चलते हैं नींद के जंगल में,
सुन फिर इश्क की कहानी झूठी सी।
राजेन्द्र कुमार
कोशिशे चिपकी है चींटी सी।
बून्द बून्द समन्दर ख़ाली होगा
जिंदगी की सुराही है फूटी सी।
खुश हो जायूँगा लो हाथ थामकर,
खाओ न कोई कसम झूठी सी।
हवाएं बुझ जाती, दिल डूबता है
जान मेरी तू रहती जब रूठी सी।
बांध के रस्सी यादें पींघे भरती हैं,
मेरे दिल में गड़ी है इक खूंटी सी।
ख़्वाबों का पत्ता पत्ता बिखर गया,
हसरतों की बस्ती दिखती लूटी सी।
राज़ चल चलते हैं नींद के जंगल में,
सुन फिर इश्क की कहानी झूठी सी।
राजेन्द्र कुमार
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