किस्मत खुशियों की किताब मांगती है,
ज़िन्दगी साँसों का हिसाब मांगती है।
तंग आ चुकी हैं उम्रभर अंधेरों से,
अब तो रातें भी आफताब मांगती हैं।
मुश्किल है जीना सादगी की चादर में,
यहां दुनियादारी कुछ रुआब मांगती है।
घुट रहा है दम परिवार के साथ पानी में,
नयी मछलियाँ अलग तालाब मांगती हैं।
रास नहीं आ रहा उन्हें चुपचाप यूँ बहना,
नदियां भी "नरेन" अब सैलाब मांगती हैं।
✍🏻 नरेंद्रपाल जैन।
ज़िन्दगी साँसों का हिसाब मांगती है।
तंग आ चुकी हैं उम्रभर अंधेरों से,
अब तो रातें भी आफताब मांगती हैं।
मुश्किल है जीना सादगी की चादर में,
यहां दुनियादारी कुछ रुआब मांगती है।
घुट रहा है दम परिवार के साथ पानी में,
नयी मछलियाँ अलग तालाब मांगती हैं।
रास नहीं आ रहा उन्हें चुपचाप यूँ बहना,
नदियां भी "नरेन" अब सैलाब मांगती हैं।
✍🏻 नरेंद्रपाल जैन।
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