शीशों से बनी इन महलों में अपना भी खुन पसीना है
महलों वालों का क्या कहना अपना मुश्किल जीना है
हम तो मिहनत मजदुरी कर सो जातें हैं जैसे तैसे
वो रहे खुशी से दुआ है ये अपने को आंसु पीना है
इन शीशे वाले महलों में पत्थर दिल इंसा का घर है
देख जरा तुम एक नजर पतझर का यहां महिना है
नादान
महलों वालों का क्या कहना अपना मुश्किल जीना है
हम तो मिहनत मजदुरी कर सो जातें हैं जैसे तैसे
वो रहे खुशी से दुआ है ये अपने को आंसु पीना है
इन शीशे वाले महलों में पत्थर दिल इंसा का घर है
देख जरा तुम एक नजर पतझर का यहां महिना है
नादान
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