लम्हे प्यार के गुज़र गए
ढूंढो तो सही किधर गए
ज़बाँ के पक्के थे जो सभी
बात से अपनी मुकर गए
देखते ही रहे बस हम उन्हें
नज़र गई वो जिधर गए
आई है जोरू ही काम में
जो ज़मीन ओ ज़र गए
आये तो थे वो सुलह कराने
आँगन में दीवार कर गए
मिले जो भी मुझ से कहीं
बस मुझ सा होकर गए
एक ना चली किसी की यहाँ
जाने कितने ही सिकन्दर गए
शहबाज़
ढूंढो तो सही किधर गए
ज़बाँ के पक्के थे जो सभी
बात से अपनी मुकर गए
देखते ही रहे बस हम उन्हें
नज़र गई वो जिधर गए
आई है जोरू ही काम में
जो ज़मीन ओ ज़र गए
आये तो थे वो सुलह कराने
आँगन में दीवार कर गए
मिले जो भी मुझ से कहीं
बस मुझ सा होकर गए
एक ना चली किसी की यहाँ
जाने कितने ही सिकन्दर गए
शहबाज़
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