<<<<<<<{ग़ज़ल}>>>>>>>>>
वक़्त पर अपने काम तो आता हूँ
नज़र ख़ुद से बेशक मैं चुराता हूँ !!
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कैसे कोई अब पढ़ेगा चेहरा मेरा
ग़म में इस कदर मैं मुस्कराता हूँ !!
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कभी तो सुनेगा ख़ुदा फ़रियाद मेरी
उसके सजदे में ही सर झुकाता हूँ !!
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दिल होना चाहता है उनसे रूबरू
मगर मिलने की न हिम्मत जुटाता हूँ !!
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हर वक़्त इस बेख़ुदी की नशे में
ख़ामख़ां होश अपने मैं उड़ाता हूँ !!
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अगर तुमको है शिकायत हमसे तो
मैं तेरी महफ़िल से चला जाता हूँ !!
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अब कोई मेरा इम्तिहाँ नहीं लेता है
चलो ख़ुद को ही मैं आजमाता हूँ !!
वक़्त पर अपने काम तो आता हूँ
नज़र ख़ुद से बेशक मैं चुराता हूँ !!
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कैसे कोई अब पढ़ेगा चेहरा मेरा
ग़म में इस कदर मैं मुस्कराता हूँ !!
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कभी तो सुनेगा ख़ुदा फ़रियाद मेरी
उसके सजदे में ही सर झुकाता हूँ !!
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दिल होना चाहता है उनसे रूबरू
मगर मिलने की न हिम्मत जुटाता हूँ !!
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हर वक़्त इस बेख़ुदी की नशे में
ख़ामख़ां होश अपने मैं उड़ाता हूँ !!
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अगर तुमको है शिकायत हमसे तो
मैं तेरी महफ़िल से चला जाता हूँ !!
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अब कोई मेरा इम्तिहाँ नहीं लेता है
चलो ख़ुद को ही मैं आजमाता हूँ !!
शायर #अनजान 'अश्क़'
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