दर्द की दरिया बही आओ चलो हम अब बांध दें
कौन रोकेगा बढो सीमाऐं सारी लांघ दें
हो रही स्पंद धरती गिर रही दीवार सब
अपनी अपनी बाजुओं पर छत को सारी टांग दें
~~
हर घरों की दीवारें नेस्तनाबूत हो गई
कौन किसकी सुनता संवेदना है सो गई
कोई कोलाहल नहीं हो दर्द बांटते रहो
देख अपने हीं दरख्तों की ये हालत हो गई
~~
ज्वार देशप्रेम की पुरजोर उठनी चाहिए
देशहित में बंधी हर हाथ उठनी चाहिए
देख अपनी है जमीं और अपनी आसमां
इसकी रक्षा में मरे भी हाथ उठनी चाहिए
~~
उदय शंकर चौधरी नादान
कौन रोकेगा बढो सीमाऐं सारी लांघ दें
हो रही स्पंद धरती गिर रही दीवार सब
अपनी अपनी बाजुओं पर छत को सारी टांग दें
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हर घरों की दीवारें नेस्तनाबूत हो गई
कौन किसकी सुनता संवेदना है सो गई
कोई कोलाहल नहीं हो दर्द बांटते रहो
देख अपने हीं दरख्तों की ये हालत हो गई
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ज्वार देशप्रेम की पुरजोर उठनी चाहिए
देशहित में बंधी हर हाथ उठनी चाहिए
देख अपनी है जमीं और अपनी आसमां
इसकी रक्षा में मरे भी हाथ उठनी चाहिए
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उदय शंकर चौधरी नादान
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