दूषित जिसका पानी हो अब ऐसा घाट नहीं बनना ।
मर्यादा आहत हो जिस में ऐसा पात नहीं बनना ।
मंचों पर आने की खा़तिर वो कुछ भी कर जाते हैं ।
आख़िर मेरी कलम है ताकत मुझको भाट नहीं बनना ।।
चाँद मुहम्मद "आख़िर"
मर्यादा आहत हो जिस में ऐसा पात नहीं बनना ।
मंचों पर आने की खा़तिर वो कुछ भी कर जाते हैं ।
आख़िर मेरी कलम है ताकत मुझको भाट नहीं बनना ।।
चाँद मुहम्मद "आख़िर"
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