फ़िराक़ साहब की पुण्यतिथि पर विशेष
ग़ैर क्या जानिये क्यों मुझको बुरा कहते हैं,
आप कहते हैं जो ऐसा तो बज़ा कहते हैं.
वाक़ई तेरे इस अन्दाज को क्या कहते हैं,
न वफ़ा कहते हैं जिस को न ज़फ़ा कहते हैं.
हो जिन्हे शक, वो करें और खुदाओं की तलाश,
हम तो इन्सान को दुनिया का ख़ुदा कहते हैं.
तेरी सूरत नज़र आई तेरी सूरत से अलग,
हुस्न को अहल-ए-नजर हुस्न नुमां कहते हैं.
शिकवा-ए-हिज़्र करें भी तो करें किस दिल से,
हम ख़ुद अपने को भी अपने से जुदा कहते हैं.
तेरी रूदाद-ए-सितम का है बयाँ नामुमकिन
फ़ायदा क्या है मगर यूँ जो ज़रा कहते हैं.
लोग जो कुछ भी कहें तेरी सितमकोशी को,
हम तो इन बातों को अच्छा न बुरा कहते हैं.
औरों का तज्रुबा जो कुछ हो मगर हम तो 'फ़िराक़'
तल्ख़ी-ए-ज़ीस्त को जीने का मज़ा कहते हैं.
• रघुपति सहाय 'फ़िराक़' गोरखपुरी
ग़ैर क्या जानिये क्यों मुझको बुरा कहते हैं,
आप कहते हैं जो ऐसा तो बज़ा कहते हैं.
वाक़ई तेरे इस अन्दाज को क्या कहते हैं,
न वफ़ा कहते हैं जिस को न ज़फ़ा कहते हैं.
हो जिन्हे शक, वो करें और खुदाओं की तलाश,
हम तो इन्सान को दुनिया का ख़ुदा कहते हैं.
तेरी सूरत नज़र आई तेरी सूरत से अलग,
हुस्न को अहल-ए-नजर हुस्न नुमां कहते हैं.
शिकवा-ए-हिज़्र करें भी तो करें किस दिल से,
हम ख़ुद अपने को भी अपने से जुदा कहते हैं.
तेरी रूदाद-ए-सितम का है बयाँ नामुमकिन
फ़ायदा क्या है मगर यूँ जो ज़रा कहते हैं.
लोग जो कुछ भी कहें तेरी सितमकोशी को,
हम तो इन बातों को अच्छा न बुरा कहते हैं.
औरों का तज्रुबा जो कुछ हो मगर हम तो 'फ़िराक़'
तल्ख़ी-ए-ज़ीस्त को जीने का मज़ा कहते हैं.
• रघुपति सहाय 'फ़िराक़' गोरखपुरी
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