हिंदी साहित्य का आधुनिक काल भारत के इतिहास के बदलते हुए स्वरूप से प्रभावित था। स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीयता की भावना का प्रभाव साहित्य में भी आया। भारत में औद्योगीकरण का प्रारंभ होने लगा था। आवागमन के साधनों का विकास हुआ। अंग्रेजी और पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव बढा और जीवन में बदलाव आने लगा।

Monday, 6 March 2017

Kavi Pankaj telling About Sahitya of 2017

अद्भुत रात्रि !जैसे माँ वाणी ने अपनी कृपा का प्रसाद हमारे लिए ही रख छोड़ा हो।।अवसर था श्रद्धेय डी.पी.चतुर्वेदी जी के जन्मोत्सव पर आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का सिवनी नगर में और स्रोता समूह हृदय में कविता सुनने की प्यास लिए अतुल्य भीड़ के रूप में उपस्थित था। बाबू जी को जन्मदिन की बधाई के साथ संचालन का दायित्व सम्भाला आदरणीय बृज किशोर जी पटेल ने और पहली पंक्ति से ही उनकी चुटकियां ठहाकों में तब्दील होने लगीं।उनके आदेश पर सरस्वती वंदना के लिए खड़ी हुई कवियत्री माधुरी किरण ने अपने शब्दों को मंत्र में ढाल कर माँ वागेश्वरी का आह्वान कर मंच पर स्थापित ही कर लिया था फिर उनकी कृपा की छाँव में आरम्भ हुए कवि सम्मेलन में आरम्भिक शानदार गंगा जमुनी पारी खेली भाई रफीक नागौरी ने उनका खुमार अभी उतरा भी  न था कि भाई धर्मेंद्र सोलंकी के गीतों में वातावरण में अनूठा सौंधापन घोल दिया।फिर मेरा क्रम ।आज मानो माँ वाणी पूरे जीवन की काव्य साधना का प्रतिफल प्रदान करने का भाव बना बैठी थी ।।एक एक मुक्तक तालियों के नाद में श्रीवृद्धि करता रहा फिर एक के बाद एक वन्स मोर में तीन कविताएं सुनी गई।भगत सिंह की कुर्बानी को जनमानस को विशेष आशीष प्राप्त हुआ, फिर आई शमशुन्निशा खान पहली बार मंच पर थी पर काव्यपाठ में कहीं इसका आभास नही हुआ ।।बेहद सधा हुआ अंदाज़ और सन्देश परक पंक्तियाँ उनके बाद जगदीश तपिश जी की ग़ज़लों मुक्तकों एवं व्यंगों का ताप महफ़िल ने महसूस किया।।फिर कमान संभाली माधुरी किरण ने और एक अद्भुत माधुर्य परिवेश में घुला महसूस होने  लगा। उनकी स्वर लहरियों में गोते लगाते जनमानस का उल्लास कवि सम्मेलन की सफलता की कहानी कह रहा था।।फिर खड़े हुए सूरज राय सूरज और हंसता गुनगुनाता वातावरण संवेदनशील हो गया नाचती हुयी कविता किसी तीर की तरह नुकीली होकर दिल के पार उत्तर गयी और सूरज के ताप से पिघल कर सम्वेदना आँखों की कोर से बहने लगी ।लेकिन इस दर्द में भी अजीब रस था ।फिर जिम्मेदारी संभाली संचालन का दायित्व सम्भालने वाले कवि बी.के.पटेल जी ने ।और आँखों से छलकते आंसुओं ने फिर से ठहाकों की शक्ल ले ली ।।।उन्होंने जिस रसमय वातावरण का निर्माण किया उसे रस के महासागर में परिवर्तित किया श्रद्धेय गिरेंद्र सिंह भदौरिया प्राण जी ने लगभग सवा घण्टे उनके शब्दों की डुगडुगी पर स्रोता समूह सम्मोहित होकर झूमता रहा।।।फिर श्रद्धेय डी.पी. चतुर्वेदी जी ने अपना काव्यमय आशीष हमें प्रदान किया।।और अंत में श्रद्धेय ओमपाल सिंह निडर जी ने राष्ट्र भक्ति पूर्ण उपसंहार किया उनके काव्य पाठ के दौरान लगने वाले भारत माता की जय वन्दे मातरम् और जय जय श्रीराम के नारों ने स्रोताओं के अंतस के उल्लास को परिभाषित किया।।कार्यक्रम के उपरान्त आयोजक श्री रामकुमार जी चतुर्वेदी एवं प्रदुम्न चतुर्वेदी जी की मुस्कराहट मानो मुझे एक सफल संयोजन की बधाई दे रही हो ।ढेर सारे स्नेह के लिए ढेर सारा आभार सिवनी।।।

जो मेरे पास खुशबू  थी चमन में छोड़ आया हूँ
मैं हसरत की उड़ानों को गगन में छोड़ आया हूँ।
ये सोचा था मिलूंगा तो उसे खुद में समो लूंगा।
मिला तो खुद को उसके ही बदन में छोड़ आया हूँ।।



पंकज अंगार
8090853584⁠⁠⁠⁠
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