इश्क़ में पीरी भी हुए और वफ़ा से गरीब भी हुए हम,,
आशिक़ भी हुए रहे और फिर उसके रक़ीब भी हुए हम...
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बारहा इज़हार किस मुह से करें, जो जवाब ही न दें,,
उसको पाएंगे कैसे, ना जिसके कभी हबीब भी हुए हम...
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कुछ तो होंसला था बेवफ़ा से इश्क़ करने में मेरा, हैंना,,
तू करता है नफरत मोजज़ा की यूँ करीब भी हुए हम...
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खाकर के चोट फिर संबलना क्यूँ आया मेहताब,,
तुझे चाहा खुशनसीब ना पाके बदनसीब भी हुए हम...
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#मेहताब_पदमपुरी
आशिक़ भी हुए रहे और फिर उसके रक़ीब भी हुए हम...
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बारहा इज़हार किस मुह से करें, जो जवाब ही न दें,,
उसको पाएंगे कैसे, ना जिसके कभी हबीब भी हुए हम...
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कुछ तो होंसला था बेवफ़ा से इश्क़ करने में मेरा, हैंना,,
तू करता है नफरत मोजज़ा की यूँ करीब भी हुए हम...
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खाकर के चोट फिर संबलना क्यूँ आया मेहताब,,
तुझे चाहा खुशनसीब ना पाके बदनसीब भी हुए हम...
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#मेहताब_पदमपुरी
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