मधुशाला छंद-
मै मौन रह निष्प्राण जड था , निर्झरी नद सा बहा था
निस्तेज मुख मंडल समा था ,हृदय स्तर भी जब ढहा था
उत्थान की , उन्मुक्त की तो, बात मुझ मे बन नही थी
जब तू किया प्रस्थान हिय मे, प्रणय हित मै जी रहा था।।
श्रीमन्नारायण चारी"विराट"
मै मौन रह निष्प्राण जड था , निर्झरी नद सा बहा था
निस्तेज मुख मंडल समा था ,हृदय स्तर भी जब ढहा था
उत्थान की , उन्मुक्त की तो, बात मुझ मे बन नही थी
जब तू किया प्रस्थान हिय मे, प्रणय हित मै जी रहा था।।
श्रीमन्नारायण चारी"विराट"
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