कोई पुरवाई चले जब यास्मीं।
क्यों तिरा तन-मन जले तब यास्मीं।।
ख़ुशबुएं अंगडाई लें जब बाग़ में।
कह उठें क्यों सब ही के सब यास्मीं।।
आज तो है बात कुछ सबसे अलग।
इस तरह चहकी है कब- कब यास्मीं।।
क्या तिरे मन में छुपा है तू बता।
खोल भी दे अपने तू लब यास्मीं।।
डाल से झटका मुझे, नोचा मुझे।
कुछ नहीं बाक़ी बचा अब यास्मीं।।
डॉ.यासमीन ख़ान
क्यों तिरा तन-मन जले तब यास्मीं।।
ख़ुशबुएं अंगडाई लें जब बाग़ में।
कह उठें क्यों सब ही के सब यास्मीं।।
आज तो है बात कुछ सबसे अलग।
इस तरह चहकी है कब- कब यास्मीं।।
क्या तिरे मन में छुपा है तू बता।
खोल भी दे अपने तू लब यास्मीं।।
डाल से झटका मुझे, नोचा मुझे।
कुछ नहीं बाक़ी बचा अब यास्मीं।।
डॉ.यासमीन ख़ान
0 comments:
Post a Comment