मधुशाला छंद-
तुम बिन कैसे मैं इस जग में , जी पाऊंगा मधुबाला
प्रेम विरह में अंतस तप के , रह नहि पाता बिन हाला
ये साखी ये मद नश्वर है, तनिक देर में खो जाता
भूला हुआ पथिक क्या जाने, क्यों जाता है मधुशाला।।
श्रीमन्नारायण चारी"विराट"
तुम बिन कैसे मैं इस जग में , जी पाऊंगा मधुबाला
प्रेम विरह में अंतस तप के , रह नहि पाता बिन हाला
ये साखी ये मद नश्वर है, तनिक देर में खो जाता
भूला हुआ पथिक क्या जाने, क्यों जाता है मधुशाला।।
श्रीमन्नारायण चारी"विराट"
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