मधुशाला छंद-
मादक सा मन मोह लिये अरु, क्यो इतना मुझ को भाया
प्राण से भी परे हो प्रियतम, क्यों इतना अंतस छाया
हिय कठोर शिला नग सा था ,तरल मुझे तुम करडाला
प्रेम अतीत रहस्य है सखी , कब वा कैसे हो माया ।।
श्रीमन्नारायण चारी"विराट"
मादक सा मन मोह लिये अरु, क्यो इतना मुझ को भाया
प्राण से भी परे हो प्रियतम, क्यों इतना अंतस छाया
हिय कठोर शिला नग सा था ,तरल मुझे तुम करडाला
प्रेम अतीत रहस्य है सखी , कब वा कैसे हो माया ।।
श्रीमन्नारायण चारी"विराट"
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