आज के चुनावी नतीज़ों पर-
प्यास बुझी धरती की या ज़हर बहे बरसात में,
कहीं कागज की नाव, कहीं घर बहे बरसात में।
मयूर आँखों में प्रेमरस मयूरी पावस पीती,
देख विरहन के नयन धर-धर बहे बरसात में।
छलके ताल नदियां बही मनोहर झरने खूब,
कहीं नाले खुशियों के चुल्लू भर बहे बरसात में।
बिजली की गरजन मन अधीर हुआ बेसुध,
जोश कहीं पर डूब गए कहीं डर बहे बरसात में।
आवक देख नए पानी की सागर ने जब दम्भ भरा,
मछलियाँ सहमी कहीं, कहीं मगर बहे बरसात में।
✍🏻 नरेंद्रपाल जैन।
प्यास बुझी धरती की या ज़हर बहे बरसात में,
कहीं कागज की नाव, कहीं घर बहे बरसात में।
मयूर आँखों में प्रेमरस मयूरी पावस पीती,
देख विरहन के नयन धर-धर बहे बरसात में।
छलके ताल नदियां बही मनोहर झरने खूब,
कहीं नाले खुशियों के चुल्लू भर बहे बरसात में।
बिजली की गरजन मन अधीर हुआ बेसुध,
जोश कहीं पर डूब गए कहीं डर बहे बरसात में।
आवक देख नए पानी की सागर ने जब दम्भ भरा,
मछलियाँ सहमी कहीं, कहीं मगर बहे बरसात में।
✍🏻 नरेंद्रपाल जैन।
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