तुम सफर हो मेरा,
सपनों के पहले कदम से
अंतिम छोर तक।
रात अँधेरे में छुपकर आती है
और मुझे ले जाती है
तुमसे मिलाने।
सच में..
सपनों में तुमसे मिलना
दूर सफर की मन्ज़िल मिलने
से कम नहीं है।
थका हुआ किंतु शांत।
सुबह देखता हूँ,
कमरे में तुम्हारी तस्वीर और
स्थिर सामान,
इशारा करते है रात को
किसी आपदा के आने का
सहमे-से लग रहे थे सब।
तन कह रहा था कि
मेरी नसों में
रक्त का आवेग तेज़ था,
धड़कन भी तीव्र चल रही थी,
अब तो तूफान भी डरा हुआ है
कहीं हम सचमुच में
मिल गए तो ???
✍🏻 नरेंद्रपाल जैन।
सपनों के पहले कदम से
अंतिम छोर तक।
रात अँधेरे में छुपकर आती है
और मुझे ले जाती है
तुमसे मिलाने।
सच में..
सपनों में तुमसे मिलना
दूर सफर की मन्ज़िल मिलने
से कम नहीं है।
थका हुआ किंतु शांत।
सुबह देखता हूँ,
कमरे में तुम्हारी तस्वीर और
स्थिर सामान,
इशारा करते है रात को
किसी आपदा के आने का
सहमे-से लग रहे थे सब।
तन कह रहा था कि
मेरी नसों में
रक्त का आवेग तेज़ था,
धड़कन भी तीव्र चल रही थी,
अब तो तूफान भी डरा हुआ है
कहीं हम सचमुच में
मिल गए तो ???
✍🏻 नरेंद्रपाल जैन।
0 comments:
Post a Comment