मधुशाला छंद-
प्रेम विरह मे विहग बना हूँ, गगन पटल पर मन घूमा
कल-कल बहती सरिता के तट, चंचलता पाकर छूमा
आत्मा के अनुबंध कहाॅ हो,देखन अँखियाँ अकुलाया
हरित लता लावण्य देख के, स्पर्शित करता हिय चूमा।।
श्रीमन्नारायण चारी"विराट"
प्रेम विरह मे विहग बना हूँ, गगन पटल पर मन घूमा
कल-कल बहती सरिता के तट, चंचलता पाकर छूमा
आत्मा के अनुबंध कहाॅ हो,देखन अँखियाँ अकुलाया
हरित लता लावण्य देख के, स्पर्शित करता हिय चूमा।।
श्रीमन्नारायण चारी"विराट"
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