मधुशाला छंद-
पृथक हृदय मे दावानल है , निरत विरह से पछताती
विपश्यन से अवलोकन किया ,विकराल दशा इठलाती
हे! प्रिय आत्मा मुझ अपूर्ण को ,अपनाकर तुम कर पूर्ती
माया मोह नही रे ! प्रियतम् , पावन ये प्रीति सताती।।
श्रीमन्नारायण चारी"विराट"
पृथक हृदय मे दावानल है , निरत विरह से पछताती
विपश्यन से अवलोकन किया ,विकराल दशा इठलाती
हे! प्रिय आत्मा मुझ अपूर्ण को ,अपनाकर तुम कर पूर्ती
माया मोह नही रे ! प्रियतम् , पावन ये प्रीति सताती।।
श्रीमन्नारायण चारी"विराट"
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