मधुशाला छंद-
कैसा किया विछोह काल ने , कर्म कहूँ या स्वम् कर्ता
गंभीर मौन व्रत साधा जब , उस पाप भार मै धर्ता
तुम अकिंचन सखी वियोग मे ,भटके बृंदावन श्यामा
भिन्न हृदय पीडा सहता हूॅ , दशा समझ लो प्रिय भर्ता।।
श्रीमन्नारायण चारी"विराट"
कैसा किया विछोह काल ने , कर्म कहूँ या स्वम् कर्ता
गंभीर मौन व्रत साधा जब , उस पाप भार मै धर्ता
तुम अकिंचन सखी वियोग मे ,भटके बृंदावन श्यामा
भिन्न हृदय पीडा सहता हूॅ , दशा समझ लो प्रिय भर्ता।।
श्रीमन्नारायण चारी"विराट"
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