मुक्तक-
1222 1222 1222 1222
सजाओ मत मुझे साथी,गगन के चाँद तारों से।
मजा मुझको नहीं आता, चमन के गुल बहारों में ।
मुझे लेकर चलो साथी,वतन के शेष सीमा पर।
करूंगी फूल मैं अर्पण,शहीदों के मजारों पे।।
ममता बनर्जी "मंजरी"
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