आज लिखती गीत कुछ फिर प्रेम वाले राधिका ।
प्रीत की ये रीत ऐसी जो बना दे साधिका ।
नाम लेकर के अलग उनको नही कोई किया ।
दूर रहकर साथ में दोनों ने ये जीवन जिया।।
प्रेम में मीरा बनी वो और सब सुख तज दिया ।
जो ह्रदय में जल उठा था प्रेम रूपी वो दिया ।
लाख रोके ये जमाना अब नही रुकनी हवा ।
लग चुका ये रोग ऐसा है नहीँ जिसकी दवा ।
रंग पीला उड़ रहा है मौसम बसन्ती हो रहा ।
घूमकर हर फूल पर भंवरा भी सुध बुध खो रहा ।
बाग़ में कलियाँ नयी फिर से रहीं हैं मुसकुरा।
चेहरे की उसके हँसी रंगत रही सबकी चुरा ।
याद करते हो मुझे या भूल बैठे हो पिया ।
घाव दिलपर जो लगे उनको कहो कैसे सिया ।
टूट जो सपने गए कैसे सजायेंगे सजन ।
कांच के टुकड़ों चुभेंगे बिखर जायेंगे सपन ।
अनुपमा दीक्षित मयंक
प्रीत की ये रीत ऐसी जो बना दे साधिका ।
नाम लेकर के अलग उनको नही कोई किया ।
दूर रहकर साथ में दोनों ने ये जीवन जिया।।
प्रेम में मीरा बनी वो और सब सुख तज दिया ।
जो ह्रदय में जल उठा था प्रेम रूपी वो दिया ।
लाख रोके ये जमाना अब नही रुकनी हवा ।
लग चुका ये रोग ऐसा है नहीँ जिसकी दवा ।
रंग पीला उड़ रहा है मौसम बसन्ती हो रहा ।
घूमकर हर फूल पर भंवरा भी सुध बुध खो रहा ।
बाग़ में कलियाँ नयी फिर से रहीं हैं मुसकुरा।
चेहरे की उसके हँसी रंगत रही सबकी चुरा ।
याद करते हो मुझे या भूल बैठे हो पिया ।
घाव दिलपर जो लगे उनको कहो कैसे सिया ।
टूट जो सपने गए कैसे सजायेंगे सजन ।
कांच के टुकड़ों चुभेंगे बिखर जायेंगे सपन ।
अनुपमा दीक्षित मयंक
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