बिन उजड़े ही बसन्त आये
बहार कभी नहीं हो सकता,
इश्क में अश्क नहीं बरसे,
ए यार कभी नहीं हो सकता।
धरती अम्बर चाँद औ सूरज
एक-दूजे को खींचते हैं,
बिन मतलब के रिश्तों का
संसार कभी नहीं हो सकता।
अनदेखे घावोँ से भरा है
मेरी पीठ का हर हिस्सा,
दुश्मन के छूरों से हुए ये
वार कभी नहीं हो सकता।
पाने और खोने की बही में
हिसाब बना है ये जीवन,
व्यापारों-सा लेकिन माँ का
प्यार कभी नहीं हो सकता।
अंकुरित एक बीज हुआ है
जन्म नया ये देखो "नरेन"
मिट्टी का अहसान जड़ों में
भार कभी नहीं हो सकता।
✍🏻 नरेंद्रपाल जैन।
बहार कभी नहीं हो सकता,
इश्क में अश्क नहीं बरसे,
ए यार कभी नहीं हो सकता।
धरती अम्बर चाँद औ सूरज
एक-दूजे को खींचते हैं,
बिन मतलब के रिश्तों का
संसार कभी नहीं हो सकता।
अनदेखे घावोँ से भरा है
मेरी पीठ का हर हिस्सा,
दुश्मन के छूरों से हुए ये
वार कभी नहीं हो सकता।
पाने और खोने की बही में
हिसाब बना है ये जीवन,
व्यापारों-सा लेकिन माँ का
प्यार कभी नहीं हो सकता।
अंकुरित एक बीज हुआ है
जन्म नया ये देखो "नरेन"
मिट्टी का अहसान जड़ों में
भार कभी नहीं हो सकता।
✍🏻 नरेंद्रपाल जैन।
0 comments:
Post a Comment