लीला भंसाली की नापाक लीला
टूट रहे सब नाते - रिश्ते,
महास्वार्थ की आँधी में l
सम्प्रदाय की छवि दिखती है,
अब तो नेहरू, गाँधी में ll
राम, कृष्ण की बात करें तो,
मज़हबवादी कहलाते l
सीता, गीता, शारद माँ पर,
रोज तंज कसते जाते ll
खिलजी भी अब पूजनीय है,
पूजनीय राक्षस महिषा l
लीला भंसाली की लीला,
पैसा, पैसा, बस पैसा ll
कभी राम को नाच नचावे,
गाली देता सीता को l
पैसे की खातिर झुठलाता,
रामायण को, गीता को ll
रतन सिंह की आन - बान,
भंसाली को क्यों भायेगी l
पद्मा की जौहर ज्वाला भी,
उसको बहुत लुभायेगी ll
जिसने इज्ज़त की रक्षा में,
अपना जीवन वारा था l
शासक खिलजी की तुलना में,
जिसको जौहर प्यारा था ll
पद्मावति की सुन्दरता नहिं,
खिलजियों की पूँजी थी l
जौहर व्रत की अग्नि शिखा में,
नारी - गरिमा गूँजी थी ll
पद्मा ने सपना नहिं देखा,
खिलजी को ही पाने का l
रतन सिंह से पति को पाकर,
फूले नहीं समाने का ll
अपनी माता - बहनों के भी,
सपनों में क्या आते हो l
सच बतलाना भंसाली तुम,
चीर हरण करवाते हो ll
कलयुग में व्यभिचारी खिलजी ,
भंसाली बनकर आया l
पद्मा जैसी माँ - बहनों को,
देख पातकी ललचाया ll
फिल्मी जग को लाज न आये,
भंसाली के सपने पर l
दादा फाल्के के वारिस को,
पैसा - पैसा जपने पर ll
फिल्म बनाने का मतलब क्या,
भारत माँ को बेचोगे l
माता - बहनों की इज्ज़त को,
सरे - आम तुम नोचोगे ll
माना नारी की इज्ज़त को,
करने में घबराते हो l
पर बेइज्ज़त करने में तुम
बोलो क्या सुख पाते हो ll
सुनो गौर से नारी पर यदि,
मिथ्या दाग लगाओगे l
फिर खिलजी की कब्र खुदेगी,
तुम उसमें गड़ जाओगे ll
अभी एक चाँटा ही खाया,
घूसा - लाठी बाकी है l
इतने से ही मत घबराना,
यह तो केवल झाँकी है ll
इतिहास तुम्हारी फिल्म नहीं,
जो इससे तुम खेलोगे l
सवा अरब की आबादी के,
कितने चाँटे झेलोगे ll
अभी समय है हाथ जोड़ गर,
करनी पर पछताओगे l
सही गलत को सोच समझकर,
असली फिल्म बनाओगे ll
कुछ अपराध मिटेगा तेरा,
माँ फिर से दुलरायेगी l
भूला वापस आ जाये तो,
खुश हो गले लगायेगी ll
अवधेश कुमार 'अवध'
919862744234
टूट रहे सब नाते - रिश्ते,
महास्वार्थ की आँधी में l
सम्प्रदाय की छवि दिखती है,
अब तो नेहरू, गाँधी में ll
राम, कृष्ण की बात करें तो,
मज़हबवादी कहलाते l
सीता, गीता, शारद माँ पर,
रोज तंज कसते जाते ll
खिलजी भी अब पूजनीय है,
पूजनीय राक्षस महिषा l
लीला भंसाली की लीला,
पैसा, पैसा, बस पैसा ll
कभी राम को नाच नचावे,
गाली देता सीता को l
पैसे की खातिर झुठलाता,
रामायण को, गीता को ll
रतन सिंह की आन - बान,
भंसाली को क्यों भायेगी l
पद्मा की जौहर ज्वाला भी,
उसको बहुत लुभायेगी ll
जिसने इज्ज़त की रक्षा में,
अपना जीवन वारा था l
शासक खिलजी की तुलना में,
जिसको जौहर प्यारा था ll
पद्मावति की सुन्दरता नहिं,
खिलजियों की पूँजी थी l
जौहर व्रत की अग्नि शिखा में,
नारी - गरिमा गूँजी थी ll
पद्मा ने सपना नहिं देखा,
खिलजी को ही पाने का l
रतन सिंह से पति को पाकर,
फूले नहीं समाने का ll
अपनी माता - बहनों के भी,
सपनों में क्या आते हो l
सच बतलाना भंसाली तुम,
चीर हरण करवाते हो ll
कलयुग में व्यभिचारी खिलजी ,
भंसाली बनकर आया l
पद्मा जैसी माँ - बहनों को,
देख पातकी ललचाया ll
फिल्मी जग को लाज न आये,
भंसाली के सपने पर l
दादा फाल्के के वारिस को,
पैसा - पैसा जपने पर ll
फिल्म बनाने का मतलब क्या,
भारत माँ को बेचोगे l
माता - बहनों की इज्ज़त को,
सरे - आम तुम नोचोगे ll
माना नारी की इज्ज़त को,
करने में घबराते हो l
पर बेइज्ज़त करने में तुम
बोलो क्या सुख पाते हो ll
सुनो गौर से नारी पर यदि,
मिथ्या दाग लगाओगे l
फिर खिलजी की कब्र खुदेगी,
तुम उसमें गड़ जाओगे ll
अभी एक चाँटा ही खाया,
घूसा - लाठी बाकी है l
इतने से ही मत घबराना,
यह तो केवल झाँकी है ll
इतिहास तुम्हारी फिल्म नहीं,
जो इससे तुम खेलोगे l
सवा अरब की आबादी के,
कितने चाँटे झेलोगे ll
अभी समय है हाथ जोड़ गर,
करनी पर पछताओगे l
सही गलत को सोच समझकर,
असली फिल्म बनाओगे ll
कुछ अपराध मिटेगा तेरा,
माँ फिर से दुलरायेगी l
भूला वापस आ जाये तो,
खुश हो गले लगायेगी ll
अवधेश कुमार 'अवध'
919862744234
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