हिंदी साहित्य का आधुनिक काल भारत के इतिहास के बदलते हुए स्वरूप से प्रभावित था। स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीयता की भावना का प्रभाव साहित्य में भी आया। भारत में औद्योगीकरण का प्रारंभ होने लगा था। आवागमन के साधनों का विकास हुआ। अंग्रेजी और पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव बढा और जीवन में बदलाव आने लगा।

Monday, 30 January 2017

अवधेश कुमार 'अवध' लीला भंसाली की नापाक लीला

लीला भंसाली की नापाक लीला

टूट   रहे  सब  नाते - रिश्ते,
महास्वार्थ  की  आँधी   में l
सम्प्रदाय की छवि दिखती है,
अब  तो  नेहरू, गाँधी   में ll

राम, कृष्ण की बात करें तो,
मज़हबवादी       कहलाते l
सीता, गीता, शारद माँ   पर,
रोज  तंज  कसते    जाते ll

खिलजी भी अब पूजनीय है,
पूजनीय    राक्षस    महिषा l
लीला   भंसाली   की  लीला,
पैसा,   पैसा,   बस     पैसा ll

कभी राम को नाच नचावे,
गाली   देता   सीता   को l
पैसे की खातिर झुठलाता,
रामायण  को, गीता  को ll

रतन  सिंह   की आन - बान,
भंसाली   को  क्यों भायेगी l
पद्मा  की   जौहर ज्वाला भी,
उसको    बहुत   लुभायेगी ll

जिसने  इज्ज़त की   रक्षा  में,
अपना   जीवन   वारा     था l
शासक खिलजी की तुलना में,
जिसको  जौहर   प्यारा  था ll

पद्मावति   की सुन्दरता नहिं,
खिलजियों की  पूँजी    थी l
जौहर व्रत की अग्नि शिखा में,
नारी - गरिमा   गूँजी    थी ll

पद्मा     ने सपना  नहिं  देखा,
खिलजी  को   ही पाने    का l
रतन सिंह से पति को पाकर,
फूले     नहीं   समाने     का ll

अपनी माता - बहनों के भी,
सपनों  में  क्या  आते   हो l
सच बतलाना भंसाली   तुम,
चीर   हरण   करवाते   हो ll

कलयुग में व्यभिचारी खिलजी ,
भंसाली     बनकर      आया l
पद्मा   जैसी   माँ - बहनों   को,
देख    पातकी      ललचाया ll

फिल्मी जग को लाज न आये,
भंसाली   के      सपने    पर l
दादा  फाल्के  के   वारिस को,
पैसा - पैसा      जपने    पर ll

फिल्म बनाने का मतलब क्या,
भारत   माँ    को       बेचोगे l
माता - बहनों की इज्ज़त को,
सरे - आम    तुम    नोचोगे ll

माना  नारी  की  इज्ज़त को,
करने     में    घबराते    हो l
पर  बेइज्ज़त  करने  में   तुम
बोलो  क्या  सुख  पाते  हो ll

सुनो  गौर  से  नारी पर यदि,
मिथ्या   दाग      लगाओगे l
फिर खिलजी की कब्र खुदेगी,
तुम  उसमें  गड़    जाओगे ll

अभी  एक  चाँटा  ही  खाया,
घूसा - लाठी     बाकी    है l
इतने  से  ही   मत   घबराना,
यह  तो  केवल   झाँकी   है ll

इतिहास तुम्हारी फिल्म नहीं,
जो   इससे   तुम     खेलोगे l
सवा  अरब   की आबादी के,
कितने    चाँटे       झेलोगे  ll

अभी समय है हाथ जोड़ गर,
करनी   पर      पछताओगे l
सही गलत को सोच समझकर,
असली   फिल्म   बनाओगे ll

कुछ   अपराध   मिटेगा तेरा,
माँ    फिर     से  दुलरायेगी l
भूला   वापस    आ जाये तो,
खुश हो    गले     लगायेगी ll

अवधेश कुमार 'अवध'
919862744234
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