ग़ज़ल
***
इम्दाद जो न कर सका दिल से दुआ किया
कुछ इस तरह भी मैं ने जहाँ का भला किया
दुन्या के काम आये न , खौफ-ए-ख़ुदा किया
हशमत अबस जहान में फिर आके क्या किया
राह-ए-वफ़ा में हमने गुज़ारी है ज़िन्दगी
वादा अदू के साथ भी हमने वफ़ा किया
आतिशज़नों जला के मकाँ मुतमइन हुए
सोचा कभी ग़रीब का कितना बुरा किया
छुप छुप के वार करना मेरी शख्सियत नहीं
जो भी किया बुरा या भला बरमला किया
दार-उ-सलीब से न कभी खौफ़ खाये हम
तैग़-उ-तबर के साये में सजदा अदा किया
✏ Md Hashmat Ali Ansari
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इम्दाद जो न कर सका दिल से दुआ किया
कुछ इस तरह भी मैं ने जहाँ का भला किया
दुन्या के काम आये न , खौफ-ए-ख़ुदा किया
हशमत अबस जहान में फिर आके क्या किया
राह-ए-वफ़ा में हमने गुज़ारी है ज़िन्दगी
वादा अदू के साथ भी हमने वफ़ा किया
आतिशज़नों जला के मकाँ मुतमइन हुए
सोचा कभी ग़रीब का कितना बुरा किया
छुप छुप के वार करना मेरी शख्सियत नहीं
जो भी किया बुरा या भला बरमला किया
दार-उ-सलीब से न कभी खौफ़ खाये हम
तैग़-उ-तबर के साये में सजदा अदा किया
✏ Md Hashmat Ali Ansari
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