एक साजिश फिजाओं में चलती रही
लौ बुझाने को आॅधी मचलती रही
ले के आॅखो में एक बेबसी बेसबब
रात को जलना था रात ढलती रही
सर पे रख मौत की आग को रात भर
वो अॅधेरो की किस्मत बदलती रही
भोर तक रोशनी की लहर जा सके
इसलिए मोमबत्ती पिघलती रही
कोई जलता है अपनी बला से जले
ये शमां का धरम था कि जलती रही
ये अलग बात है मुँह से बोली नहीं
आह दिल से बराबर निकलती रही
दूर करना ही है सारे अन्धेरे को
भावना एक सीने में पलती रही
न चुनौती सही उसने तम की कभी
राज ता उम्र शोले निकलती रही
राज शुक्ल
मगसम 4149/2016
लौ बुझाने को आॅधी मचलती रही
ले के आॅखो में एक बेबसी बेसबब
रात को जलना था रात ढलती रही
सर पे रख मौत की आग को रात भर
वो अॅधेरो की किस्मत बदलती रही
भोर तक रोशनी की लहर जा सके
इसलिए मोमबत्ती पिघलती रही
कोई जलता है अपनी बला से जले
ये शमां का धरम था कि जलती रही
ये अलग बात है मुँह से बोली नहीं
आह दिल से बराबर निकलती रही
दूर करना ही है सारे अन्धेरे को
भावना एक सीने में पलती रही
न चुनौती सही उसने तम की कभी
राज ता उम्र शोले निकलती रही
राज शुक्ल
मगसम 4149/2016
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