तांटक छंद
16/14 =30 मात्रा अंत में तीन गुरु
16मात्रा के बाद यति आवश्यक है
बसंत पंचमी की हार्दिक बधाईयाँ
माँ शारद की पूजा करलो,
बसंत पँचमी आई है।
रँग बिरँगे फूल खिले है ,
मंगल खुशियाँ छाई है ।।
सुर वीणा के सुगम ताल से
मंड़ल गुंजित होता है।
सरस्वती मन हारी छवि से
लेखन सुंदर होता है।।
भगवा रँग के फूल खिल गये ,
जुही पलाश कि बेला है।
भँवरों के गुंजन करने का ,
मौसम भी अलबेला है।।
पुलकित होती धरा गगन सब,
बसुंधरा मुस्काई है।
कली कली में यौवन फूटा,
मौसम की अँगड़ाई है।।
शीतल ऋतु ने डेरा बाँधा,
ठंड पड़ी सकुचाई रे।
कंबल और रजाई की अब
करदी साथ विदाई रे।।
प्रेम प्रीत के अंकुर फूटे,
यौवन फिर मदमाया रे।
घर आँगन की रंगोली में
रंग बंसती छाया रे।।
अमुआ में फिर मौर आ गई
कोयल गीत सुनाये रे।
कुहू कुहूँ की तान सुरीली,
मनवा को भरमाये रे।।
विरहनियाँ है प्रीत कि प्यासी,
संग प्रिये मन भाये जी।
आवत देख मीत मन मितवा,
हर्षित जियरा पाये जी।।
बहे सुरों की तान सुरीली,
मीठे ढोल सुहाने रे।
सुगम गीत के बोल सजीले,
सम संगीत लुभाने रे ।।
खेतों में मद मस्त हवायें
अरु पीली सरसों फूली।
फूल फलों से वृक्षों की सब
शाखायें लदकर झूली ।।
वो गुलाब की क्यारी प्यारी
मुझको पास बुलाती है।
फूलों की भीनी सी खुशबू
अंदर तक महकाती है।।
निर्मल कलकल सरिता बहती,
शांत मधुर सुखदायी है।
मौसम की रानी ने आकर
महकाई पुरवाई है।।
सरिता सिंघई कोहिनूर
16/14 =30 मात्रा अंत में तीन गुरु
16मात्रा के बाद यति आवश्यक है
बसंत पंचमी की हार्दिक बधाईयाँ
माँ शारद की पूजा करलो,
बसंत पँचमी आई है।
रँग बिरँगे फूल खिले है ,
मंगल खुशियाँ छाई है ।।
सुर वीणा के सुगम ताल से
मंड़ल गुंजित होता है।
सरस्वती मन हारी छवि से
लेखन सुंदर होता है।।
भगवा रँग के फूल खिल गये ,
जुही पलाश कि बेला है।
भँवरों के गुंजन करने का ,
मौसम भी अलबेला है।।
पुलकित होती धरा गगन सब,
बसुंधरा मुस्काई है।
कली कली में यौवन फूटा,
मौसम की अँगड़ाई है।।
शीतल ऋतु ने डेरा बाँधा,
ठंड पड़ी सकुचाई रे।
कंबल और रजाई की अब
करदी साथ विदाई रे।।
प्रेम प्रीत के अंकुर फूटे,
यौवन फिर मदमाया रे।
घर आँगन की रंगोली में
रंग बंसती छाया रे।।
अमुआ में फिर मौर आ गई
कोयल गीत सुनाये रे।
कुहू कुहूँ की तान सुरीली,
मनवा को भरमाये रे।।
विरहनियाँ है प्रीत कि प्यासी,
संग प्रिये मन भाये जी।
आवत देख मीत मन मितवा,
हर्षित जियरा पाये जी।।
बहे सुरों की तान सुरीली,
मीठे ढोल सुहाने रे।
सुगम गीत के बोल सजीले,
सम संगीत लुभाने रे ।।
खेतों में मद मस्त हवायें
अरु पीली सरसों फूली।
फूल फलों से वृक्षों की सब
शाखायें लदकर झूली ।।
वो गुलाब की क्यारी प्यारी
मुझको पास बुलाती है।
फूलों की भीनी सी खुशबू
अंदर तक महकाती है।।
निर्मल कलकल सरिता बहती,
शांत मधुर सुखदायी है।
मौसम की रानी ने आकर
महकाई पुरवाई है।।
सरिता सिंघई कोहिनूर
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