गजल
इश्क में वो इक जुर्माना
अच्छा है
खो दो खुशियाँ हर्जाना
अच्छा है
परेशान हूँ कुछ सोच
कर नदीम
चलो इश्क में मर
जाना अच्छा है
क्या बताओगे खुदा
से वहां पर
इससे तो अभी डर जाना
अच्छा है
छोड़ कर घर को क्यू
दूर बैठे हो
रोयेंगे सब चलो घर
जाना अच्छा है
छू सकते नही आसमा
को तुम
कोई बात नही रुक
जाना अच्छा है
दुवायें मै भी करता
रहूँगा नदीम
रूठकर रहने से मिल
जाना अच्छा है
कवि नदीम जगदीशपुरी
8795124923,,8726221529
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